बाज़ार दर्शन Bazaar darshan class 12 summary and MCQs CBSE
पाठ का सार
बढ़ता हुआ उपभोक्तावाद:-
लेखक ने उपभोक्तावाद को उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया है। लेखक के एक मित्र बाज़ार में मामूली-सी चीज़ लेने गए थे, किंतु बाज़ार की जगमगाहट देखकर वे अनेक चीज़े ले आए और सारा दोष अपनी पत्नी पर लगा दिया। लेखक के अनुसार, यह सारा दोष केवल पैसे की गर्मी का है। कुछ लोग बुद्धि और संयम से काम लेते हुए पैसे को जोड़कर ही गर्व अनुभव करते हैं। लेखक ने अपने दूसरे मित्र के बारे में यही अनुमान लगाया, जो बाज़ार से कुछ भी न ला सके और वे अपनी ‘पर्चेजिंग पावर' के हिसाब से ही खुश हैं। इस प्रकार वह भी उपभोक्तावाद के शिकार हैं।
बाज़ारवाद का प्रभाव:-
बाज़ारवाद अपने आप में बहुत महत्त्वपूर्ण है। लेखक के मित्र ने भी बाज़ार की चकाचौंध को ही दोषी माना। जो लोग इस चकाचौंध के शिकार हो जाते हैं, वे बुरी तरह फँसकर अपना ही नुकसान कर बैठते हैं। इसका दूसरा उदाहरण यह है कि लेखक का एक मित्र बाज़ार की चकाचौंध में इस प्रकार फँसा कि दिनभर घूमने के बाद भी बाज़ार से कोई वस्तु खरीद ही नहीं पाया।
इसका कारण उसने लेखक को यह बताया कि बाज़ार में सभी कुछ उसे पसंद आया, किंतु वह कोई एक-दो वस्तु ही लाता, तो अन्य वस्तुओं को उसे छोड़ना पड़ता और वह कुछ भी छोड़ना नहीं चाहता था, इसलिए वह कुछ भी नहीं खरीद पाया। इसका लेखक ने यह अर्थ निकाला कि यदि हमें अपनी आवश्यकता का पता नहीं हो, तो हम यह निर्णय नहीं ले पाएंगे कि हमें क्या खरीदना है और क्या नहीं? और इसका परिणाम भी अच्छा नहीं होगा।
बाज़ार का जादू और लेखक की राय:-
लेखक के अनुसार, बाज़ार का जादू खाली और भरी जेब दोनों पर चलता है। यदि जेब खाली है और मन भरा हुआ नहीं है, तब भी बाज़ार अपनी ओर खींचता है और यदि जेब भरी है तो खरीदारी तो आप खूब करेंगे, परंतु व्यर्थ की। अंतत: यह आपके सुख की तुलना में दुःखदायी अधिक होगी। व्यर्थ की चीज़ों की खरीदारी से बाज़ार का जादू और ज्यादा प्रभावी होता है। लेखक के अनुसार, आपको बाज़ार तभी जाना चाहिए, जब आप निर्णय ले चुके हों कि आपको क्या खरीदना है? मन को बलपूर्वक दबाना भी उचित नहीं है और मन को इतनी भी छूट न हो कि आप ही उसके पीछे चलने लगें। हालाँकि मन के प्रयोजन को भी ध्यान में रखकर चलना चाहिए। लेखक के अनुसार,बाज़ार जाने से पूर्व ही मन में यह दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए कि हमें क्या खरीदना है? इससे व्यक्ति बाज़ार की चकाचौंध से अपने आपको बचा पाएगा और उसके द्वारा खरीदी गई वस्तु उसे आनंद प्रदान करेगी।
जीवन को श्रेष्ठता से जीने की कला:-
लेखक के अनुसार, व्यक्ति को अपने मन को नियंत्रित कर जीवन के सभी महत्त्वपूर्ण निर्णय सोच-विचारकर लेने चाहिए। लेखक के अनुसार, चूर्ण बेचने वाले भगत जी का जीवन एक आदर्श जीवन है। भगत जी का चूर्ण इतना लोकप्रिय है कि यदि वे उसे व्यावसायिक दृष्टि से बेचते, तो मालामाल हो जाते, किंतु भगत जी निश्चित समय पर अपने घर से निकलते थे और जब तक उनके चूर्ण की बिक्री से छ: आने की कमाई हो जाती थी, तभी तक वे चूर्ण बेचते थे। फिर उसके बाद वे मुफ्त में ही चूर्ण बालकों में बाँट देते थे। उन्होंने कभी भी अधिक कमाई करने की नहीं सोची। भगत जी का भले ही अक्षर ज्ञान शून्य हो, किंतु लेखक उन्हें विद्वान् मानता है। भगत जी को बाज़ार की चकाचौंध भी अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाती, क्योंकि वे एक विवेकपूर्ण निर्णय लेने वाले व्यक्ति हैं।
कई बार यदि कोई मोटर धूल उड़ाती हुई जाती है, तो हम सोचते हैं कि काश हम भी किसी अमीर व्यक्ति के यहाँ पैदा होते और हम भी कार में जाते, किंतु यह सोच भगत जी को अपनी ओर नहीं खींचती। भगत जी के पास ऐसा कौन-सा बल है, जिससे उनके सामने तमाम व्यंग्य-शक्ति असफल हो जाती हैं, लेखक उस बल को कोई नाम नहीं दे पाता। ऐसे व्यक्तियों में आध्यात्मिक, आत्मिक, धार्मिक या नैतिक बल होता है। वास्तव में, केवल निर्बल व्यक्ति ही धन की ओर झुकता है।
बाज़ार की सार्थकता और मनुष्य:-
लेखक के अनुसार, बाज़ार को सार्थकता वही व्यक्ति दे पाता है, जिसे यह पता होता है कि उसे कब, क्या और कितना खरीदना है? अनावश्यक वस्तुएँ खरीदने वाला व्यक्ति ‘पर्चेजिंग पावर' के गर्व में बाज़ार की शैतानी शक्ति और व्यंग्य शक्ति को ही बढ़ावा देता है। लेखक ने अपने दो मित्रों के उदाहरण दिए हैं। वे बताते हैं कि जो अर्थशास्त्र केवल बाज़ार का पोषण करता है, वह अनीतिशास्त्र है। यह उपभोक्ताओं को दु:ख, गरीबी तथा ईर्ष्या देता है। ऐसे बाज़ारवाद को लेखक गलत मानता है। ऐसे में लोगों की आवश्यकताओं का आदान-प्रदान नहीं हो पाता, अपितु शोषण और कपट को बढ़ावा मिलता है।
गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न
1. उनका आशय था कि यह पत्नी की महिमा है। उस महिमा का मैं कायल हूँ आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नीकी ही प्रमुखता प्रमाणित है और यह व्यक्तित्व का प्रश्न। नहीं, स्त्रीत्व का प्रश्न है। स्त्री माया न जोड़े, तो क्या मैं जोडू? फिर भी सच-सच है और वह यह कि इस बात में पत्नी की ओट ली जाती है। मूल में एक और तत्त्व की महिमा सविशेष है। वह तत्त्व है-मनीबैग अर्थात् पैसे की गरमी गा एनर्जी। पैसा पावर है, पर उसके सबूत में आस-पास माल-टाल न जमा हो तो क्या वह खाक पावर है। पैसे को देखने के लिए बैंक-हिसाब देखिए, पर माल-असबाब, मकान-कोठी तो अनदेखे भी दिखते हैं। पैसे की उस 'पर्चेजिंग पावर' के प्रयोग में ही पावर का रस है। लेकिन नहीं। लोग संयमी भी होते हैं। वे फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं। वे पैसा बहाते नहीं हैं और बुद्धि और संयमपूर्वक वह पैसे को जोड़ते जाते हैं। वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा उन्हें दरकार नहीं है। बस खुद पैसे के जुड़ा होने पर।
उनका मन गर्व से भरा फूला रहता है।
(क) गद्यांश के अनुसार लेखक किसकी महिमा का
कायल है।
(i) पैसे की
(ii) पावर की
(iii) पत्नी की
(iv) मित्रता की
(ख) किस बात से पत्नी की ओट ली जाती है?
(i) पैसे जोड़ने की (ii) स्त्रीत्व के प्रति
(iii) फिजूलखर्च करने में (iv) पत्नी से झगड़ने की
(ग) पैसे की किस पावर के प्रयोग में पावर का रस है?
(i) आवश्यक सामान को खरीदने में
(ii) पर्चेजिंग पावर
(iii) मनी पावर
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं
(घ) संयमी लोग क्या करते हैं?
(i) फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं
(ii) पैसा बहाते नहीं हैं
(iii) बुद्धि व संयमपूर्वक पैसा जोड़ते जाते हैं
(iv) उपरोक्त सभी
(ङ) संयमी लोग पैसे की पावर को कितना निश्चित
मानते हैं?
(i) उनके अनुसार, पैसे के प्रयोग की परीक्षा उन्हें
दरकार नहीं है
(ii) पैसे को खर्च करके वे कुछ भी कर सकते हैं वे
(iii) पैसे को जोड़ना आवश्यक नहीं है
(iv) पैसे का उपभोग करना बहुत आवश्यक है
2. बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो।सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज़ है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में यह खूबी है कि आग्रह नहीं है आग्रह तिरस्कार जगाता है। लेकिन ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे यह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफी नहीं है और चाहिए और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है ओह!
(क) बाजार लोगों को आमंत्रित क्यों करता है?
(i) नया सामान खरीदने के लिए
(ii) ग्राहकों को लूटने के लिए
(iii) नए उत्पाद से अवगत कराने के लिए
(iv) अपना स्वरूप दिखाने के लिए
(ख) “मैं तुम्हारे लिए हूँ' पंक्ति में 'मैं' शब्द किसके लिए
प्रयोग हुआ है?
(i) लेखक के लिए
(ii) ग्राहक के लिए
(iii) उत्पादक के लिए (iv) बाजार के लिए
(ग) मूक आमंत्रण कौन-सा कार्य करता है?
(i) शांति बनाए रखने का
(ii) ग्राहक में चाह जगाने का
(iii) बिना कारण बोलने का
(iv) अपनी विशिष्ट पहचान बनाने का
(घ) लेखक के अनुसार, व्यक्ति को बाजार की चकाचौंध के बीच खड़े होकर क्या अनुभव होने लगता है?
(i) उसके पास पर्याप्त सामान है
(ii) उसे और सामान खरीदने की आवश्यकता है
(iii) उसे बाजार से निकल जाना चाहिए
(iv) उसे अधिक सामान नहीं खरीदना है
(ङ) 'अजी आओ भी' पंक्ति से कौन-सा भाव स्पष्ट हो
रहा है?
(i) विनय का
(ii) आदेश का
(iii) आकर्षण का (iv) अलगाव का
3. पड़ोस में एक महानुभाव रहते हैं, जिनको लोग भगत जी कहते हैं। चूरन बेचते हैं। यह काम करते, जाने उन्हें कितने बरस हो गए हैं। लेकिन किसी एक भी दिन चूरन से उन्होंने छः आने से ज्यादा पैसे नहीं कमाए। चूरन उनका आस-पास सरनाम है और खुद खूब लोकप्रिय हैं। कहीं व्यवसाय का गुर पकड़ लेते और उस पर चलते तो आज खुशहाल क्या, मालामाल होते! क्या कुछ उनके पास न होता! इधर दस वर्षों से मैं देख रहा हूँ, उनका चूरन हाथों-हाथ बिक जाता है। पर वह न उसे थोक में देते हैं, न व्यापारियों को बेचते हैं। पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते। बँधे वक्त पर अपनी चूरन की पेटी लेकर घर से बाहर हुए नहीं कि देखते-देखते छ: आने की कमाई उनकी हो जाती है। लोग उनका चूरन लेने को उत्सुक जो रहते हैं। चूरन से भी अधिक शायद वह भगत जी के प्रति अपनी सद्भावना का देय देने को उत्सुक रहते हैं। पर छ: आने पूरे हुए नहीं कि भगत जी बाकी चूरन बालकों को मुफ़्त बाँट देते हैं। कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई उन्हें पच्चीसवाँ पैसा भी दे सके। कभी चूरन में लापरवाही नहीं हुई और कभी रोग में होता भी मैंने उन्हें नहीं देखा है।
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है?
(i) भक्तिन
(ii) काले मेघा पानी दे
(iii) बाज़ार दर्शन
(iv) नमक
(ख) चूरन बेचने वाले का स्वभाव कैसा था?
(i) संतोषी
(ii) स्वार्थी
(iii) गंभीर
(iv) अहंकारी
(ग) चूरन शीघ्र बिक जाने का क्या कारण था?
(i) चूरन बेचने वाले की जान पहचान
(ii) चूरन की गुणवत्ता
(iii) चूरन के मूल्य का कम होना
(iv) चूरन की माँग
(घ) चूरन खरीदने वालों की उत्सुकता का क्या कारण बताया गया है?
(i) भगत जी के प्रति उनकी सद्भावना
(ii) भगत जी की बालकों को मुफ्त में चूरन बाँटने की
प्रवृत्ति
(iii) भगत जी का व्यापारी स्वभाव
(iv) भगत जी का अधिक पुराना व्यापारी होना
(ङ) भगत जी सदैव किस नियम पर डटे रहते थे?
(i) कम चूरन बेचना
(ii) बाजार का मोल-भाव न करना
(iii) छ: आने से अधिक का चूरन न बेचना
(iv) बच्चों को कम कीमत पर चूरन बेचना
4. उस बल को नाम जो दो; पर वह निश्चय उस तल की
वस्तु नहीं है जहाँ पर संसारी वैभव फलता-फूलता है। वह कुछ अपर जाति का तत्त्व है। लोग स्पिरिचुअल कहते हैं; आत्मिक, धार्मिक, नैतिक कहते हैं; मुझे योग्यता नहीं कि मैं उन शब्दों में अंतर दे और प्रतिपादन करूँ। मुझमें
शब्द से सरोकार नहीं। मैं विद्वान नहीं कि शब्दों पर अटकूँ। लेकिन इतना तो है कि जहाँ तष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है। बल्कि यदि उस बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए, तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रभावित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है। वह अबलता है। वह मनुष्य पर धन की और चेतन पर जड़ की विजय है।
(क) अपर जाति का तत्त्व कौन है?
(i) मध्यम वर्ग के लोग
(ii) निम्न वर्ग के लोग
(iii) उच्च वर्ग के लोग
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं
(ख) व्यक्ति की निर्बलता कब प्रभावित होती है?
(i) धन संचय और वैभव की चाह में
(ii) धन संचय करने में
(iii) वैभव की आकांक्षा न करने में
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं
(ग) निर्बल धन की ओर क्यों झुकता है?
(i) धन की कमी में
(ii) धन के आकर्षण में
(iii) आत्मशक्ति के अभाव में
(iv) वैभव की चाह में
(घ) लेखक के अनुसार, अबलता क्या है?
(i) असंतोषी होना
(ii) धन की आकांक्षा
(iii) संचय की तृष्णा
(iv) ये सभी
(ङ) मनुष्य पर धन की विजय किसके समान है?
(i) चेतन पर जड़ की विजय के
(ii) धर्म पर अधर्म की विजय के
(iii) सत्य पर असत्य की विजय के
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं
5. यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाज़ार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर' के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति, शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाजार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं, जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी। इस सद्भाव के ह्रास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे ग्राहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं।
(क) बाजार को सार्थकता दे सकता है
(i) पैसे की पावर रखने वाला
(ii) संयमी लोग
(iii) जो अपनी आवश्यकता जानता है
(iv) जिसे बाजार आकर्षित करता है
(ख) पर्चेजिंग पावर के गर्व में लोग बाजार को क्या देते हैं?
(i) सार्थकता
(ii) विनाशक शक्ति
(iii) सद्भावना
(iv) संतोष
(ग) बाजार की सार्थकता से तात्पर्य है
(i) ग्राहकों की संतुष्टि
(ii) ग्राहकों को अपने जाल में फँसाना
(iii) पर्चेजिंग पावर को बढ़ाना
(iv) ग्राहकों को आकर्षित करना
(घ) बाजारूपन बढ़ने से क्या होता है?
(i) सार्थकता बढ़ती है (ii) पावर बढ़ती है
(iii) सद्भावना घटती है
(iv) सद्भावना बढ़ती है
(ङ) 'सार्थकता' में प्रत्यय है
(ii) स
(iii) अता
(iv) ता
(i) सा
अध्याय पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न
1. लेखक के मित्र बाजार में क्या लेने गए थे?
(क) एक मामूली चीज
(ख) बहुत-सा घर का सामान
(ग) फर्नीचर
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
2. आदिकाल से सामान खरीदने के विषय में किसकी
प्रमुखता प्रमाणित है?
(क) पति की
(ख) पत्नी की
(ग) पति-पत्नी दोनों की
(घ) धन की
3. लेखक के अनुसार ज्यादातर लोग सामान किसके कारण खरीदते हैं?
(क) जरूरत के कारण
(ख) अपनी पत्नी के कारण
(ग) पर्चेजिंग पावर के कारण
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
4. बाजार में खड़े होकर व्यक्ति को क्या लगता है?
(क) यहाँ कितना परिमित है और मेरे पास कितना
अतुलित
(ख) यहाँ कितना अतुलित है और मेरे पास कितना कम
(ग) (क) और (ख) दोनों
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
5. बाजार मनुष्य को कैसे बेकार बना देता है?
(क) असंतोष से घायल करके
(ख) तृष्णा से घायल करके
(ग) ईर्ष्या से घायल करके
(घ) उपरोक्त सभी
6. लेखक के अनुसार, किस हालत में बाजार के जादू का असर खूब होता है?
(क) जब जेब भरी हो और मन खाली हो
(ख) जब जेब और मन दोनों खाली हों
(ग) जब जेब खाली भी न हो और मन भरा हुआ हो
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
7. बाजारवाद को किससे बढ़ावा मिलता है?
(क) मन के भरे होने से
(ख) जेब के खालीपन से
(ग) मन के खालीपन से
(घ) धन अधिक होने से
8. बाजार के जादू की तुलना किससे की गई है?
(क) धनाकर्षण से
(ख) चुंबक के आकर्षण से
(ग) मन के आकर्षण से
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
9. लेखक के अनुसार, बाजार कब जाना चाहिए?
(क) जब मन खाली न हो (ख) जब मन खाली हो
(ग) जब पैसे ज्यादा हों (घ) जब पैसे ज्यादा न हों
10. लेखक के अनुसार, शून्य होने का अधिकार केवल
किसका है?
(क) प्रत्येक मनुष्य का
(ख) संतोषी व्यक्ति का
(ग) परमात्मा का
(घ) प्रत्येक जीव का
11. लेखक के अनुसार, ठाठ देकर मन को बंद करके रखना क्या है?
(क) बुद्धिमत्ता
(ख) मूर्खता
(ग) चेतनता
(घ) इनमें से कोई नहीं
12. लोग भगत जी का चूरन लेने को क्यों उत्सुक रहते हैं?
(क) उनका चूरन उन्हें अच्छा लगता है
(ख) वे उनसे सद्भावना रखते हैं
(ग) वे बालकों को मुफ्त में चूरन देते हैं
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
13. लेखक ने चूरन वाले को किसकी संज्ञा दी है?
(क) किसी भी मान्य पाठक से श्रेष्ठ
(ख) अपदार्थ प्राणी
(ग) अडिग व संतोषी व्यक्ति
(घ) उपरोक्त सभी
14. पैसे की व्यंग्य-शक्ति क्या कर सकती है?
(क) सगों के प्रति कृतज्ञ
(ख) सगों के प्रति कृतघ्न
(ग) अकिंचन बना सकती है
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
15. पैसे की व्यंग्य शक्ति किसके सामने नहीं चलती?
(क) आत्मिक शक्ति के सामने
(ख) धार्मिक शक्ति के सामने
(ग) नैतिक शक्ति के सामने
(घ) उपरोक्त सभी
16. किसके कारण भगत जी का मन बाजार के आकर्षण से विचलित नहीं होता?
(क) चूरन बेचने में व्यस्त रहने से
(ख) पैसों का अभाव होने के कारण
(ग) निश्चित प्रतीति के बल के कारण
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
17. 'बाजार दर्शन' से लेखक का क्या आशय है?
(क) बाजार के बारे में विवरण
(ख) बाजार की ओर लोगों का आकर्षण
(ग) बाजार की सार्थकता
(घ) उपरोक्त सभी
18. 'बाजार दर्शन' पाठ में किस सद्भाव के ह्रास' की बात की गई है?
(क) दुकानदार के सद्भाव की
(ख) ग्राहक के सद्भाव की
(ग) (क) और (ख) दोनों
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
19. 'सद्भाव के ह्रास' की परिणति क्या है?
(क) ग्राहक द्वारा पैसे की शक्ति दिखाना
(ख) ग्राहक द्वारा अधिक सामान खरीदना
(ग) दुकानदार द्वारा निरर्थक वस्तुएँ बेचना
(घ) उपरोक्त सभी
20. जहाँ सद्भाव का ह्रास हो, ऐसे बाजार को लेखक ने
किसका बाजार बनाया है?
(क) कपट का बाजार
(ख) सद्भाव का बाजार
(ग) निष्कपट बाजार
(घ) हानिरहित बाजार
21. लेखक के अनुसार कपट के बाजार हैं
(क) मानवता के लिए सहायक
(ख) मानवता को बढ़ावा देने वाले
(ग) मानवता के लिए विडंबना
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
22. 'बाजार दर्शन' पाठ में लेखक के किसे स्पष्ट
किया है?
(क) बाजारवाद को
(ख) उपभोक्तावाद को
(ग) बाजार की सार्थकता
(घ) उपरोक्त सभी
23. बाजार की चकाचौंध किन व्यक्तियों को आकर्षित नहीं करती?
(क) जिनका एक निश्चित लक्ष्य होता है
(ख) जिनकी आवश्यकताएँ कम होती हैं
(ग) जिनका मन रिक्त होता है
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
24. लेखक के अनुसार कपट वाले बाजार का पोषण करने वाला शास्त्र कैसा होता है?
(क) सरासर औंधा
(ख) मायावीशास्त्र
(ग) अनीति-शास्त्र
(घ) ये सभी
25. 'बाजार दर्शन' पाठ के लेखक कौन हैं?
(क) जैनेंद्र कुमार
(ख) रामवृक्ष बेनीपुरी
(ग) रामचंद्र शुक्ल
(घ) महादेवी वर्मा
उत्तरमाला
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